गुजरात में एरंडा की खेती और उत्पादन
भारत में एरंडा (Castor) उत्पादन का सबसे बड़ा हिस्सा गुजरात राज्य से आता है। देश के कुल उत्पादन में 70% से अधिक योगदान अकेले गुजरात का है। आमतौर पर राज्य में 6.5 से 7.5 लाख हेक्टेयर में एरंडा बोया जाता है।
वर्ष 2025 में 25 अगस्त तक 5.39 लाख हेक्टेयर में एरंडा का बोवणी (वावेतर) पूरा हो चुका है। पिछले साल इसी समय केवल 4.69 लाख हेक्टेयर में ही खेती हुई थी।
एरंडा के आज के भाव (2025)
आज की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात और राजस्थान की मंडियों में एरंडा के दाम इस प्रकार चल रहे हैं 👇
| मंडी का नाम | न्यूनतम भाव (₹/क्विंटल) | अधिकतम भाव (₹/क्विंटल) | औसत भाव (₹/क्विंटल) |
|---|---|---|---|
| ऊंझा मंडी (गुजरात) | 1220 | 1320 | 1280 |
| थराद मंडी (बनासकांठा) | 1250 | 1315 | 1290 |
| फलोदी मंडी (राजस्थान) | 1240 | 1300 | 1270 |
| गोंडल मंडी (गुजरात) | 1230 | 1325 | 1285 |
👉 औसतन एरंडा का भाव ₹1270–1300 प्रति क्विंटल तक चल रहा है।
एरंडा की कीमत 1400 रु. से ऊपर क्यों नहीं जाती?
पिछले पाँच साल से किसानों की यही शिकायत है कि एरंडा के भाव 1300–1350 रु. तक तो जाते हैं, लेकिन 1400 रु. से ऊपर स्थिर नहीं रहते।
- बाजार में आवक घटकर भी 30 हज़ार बोरी के आसपास रह जाती है।
- फिर भी लंबे समय तक तेज़ी नहीं टिकती।
- दिवेल तेल (Castor Oil) की एक्सपोर्ट अच्छी मात्रा में हो रही है, फिर भी भाव में बड़ा उछाल नहीं आता।
किसानों की राय
पाटन और बनासकांठा जिले के किसानों का कहना है कि –
- खेती का खर्च लगातार बढ़ रहा है।
- प्राकृतिक मौसम की अनियमितता से उत्पादन घट रहा है।
- एरंडा एक सालाना फसल है, जिसमें एक ही पैदावार मिलती है।
- अगर कीमतों में मुनाफ़ा नहीं मिलेगा, तो किसान दूसरे विकल्प की तरफ जा सकते हैं।
निष्कर्ष
एरंडा खेती गुजरात के किसानों के लिए विदेशी मुद्रा कमाने वाली “सोने की मुर्गी” है। लेकिन अगर भाव 1400 रु. से ऊपर स्थिर नहीं होते, तो किसान धीरे-धीरे इस फसल से दूरी बना सकते हैं।
सरकार और नीतिगत स्तर पर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसी गारंटी, निर्यात बढ़ावा और स्थिर भाव की ज़रूरत है। तभी एरंडा खेती लंबे समय तक टिक पाएगी।
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